श्री दुर्गासप्तशती पढ़ने की विधि | श्री दुर्गासप्तशती पढ़ने का क्रम | श्री दुर्गासप्तशती पढ़ने का तरीका
दुर्गा माता षोडशोपचार पूजा मंत्र और विधि
श्री दुर्गासप्तशती पढ़ने की विधि इस तरह से है:
- अथ सप्तश्लोकी दुर्गा
श्री दुर्गाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्
तत्व शुद्धि के लिए चार बार इन मंत्रों से आचमन करें:
प्राणायाम करके गुरुजनों, देवी-देवताओं को याद करके हिंदी या संस्कृत में संकल्प करें |
पुस्तक की पंचोपचार विधि से पूजा करें |
इसके बाद शापोद्धार करें | शापोद्धार मंत्र का 7 बार जप करें |
शापोद्धार का मंत्र है :
इसके बाद उत्कीलन मंत्र का 21 बार जाप करें :
इसके जप के पश्चात् 7 बार मृतसंजीवनी विद्या का जाप करना चाहिए |जिसका मंत्र इस प्रकार है :
'ॐ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि
विद्ये मृतमुत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा।'
मारीचकल्प के अनुसार सप्तशती-शापविमोचन का मन्त्र यह है:
'ॐ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ॐ ऐं क्षोभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं।'
- कवच को बीज, अर्गला को शक्ति और कीलक को कीलक की संज्ञा दि गयी है | इसलिए पहले कवच फिर अर्गला और उसके बाद कीलक का पाठ होना चाहिए |
- इसके बाद अथ वेदोक्त रात्रिसूक्त और अथ तंत्रोक्त रात्रिसूक्त पढ़ना चाहिए |
- देवअथर्वशीर्ष का पाठ करें |
- 108 बार नवार्ण मंत्र का जाप करें ( नवार्ण मंत्र के जाप से पहले विनियोग, ऋष्यादिन्यास, करन्यास, हृदयादिन्यास, अक्षरन्यास, दिन्ग्यन्यास, ध्यान और माला पूजा पुस्तक में बताये अनुसार करना चाहिए )
- पुस्तक में दिए अनुसार न्यास, ध्यान और सप्तशती न्यास करें |
- प्रत्येक चरित्र का विनियोग, ध्यान और प्रत्येक अध्याय का ध्यान पुस्तक में दिया गया है |
- अध्याय समाप्त होने पर इति, वध, अध्याय या समाप्त शब्द नहीं बोलना चाहिए |
- प्रथम अध्याय का पाठ करें | (इसे शुरू करने से पहले हाथ में फूल, अक्षत और जल लेकर विनियोग और ध्यान करें , इसके बाद फूल, अक्षत और जल को जमीन पर छोड़ दें )
- दूसरे अध्याय का पाठ करें | (इसे शुरू करने से पहले हाथ में फूल, अक्षत और जल लेकर विनियोग और ध्यान करें , इसके बाद फूल, अक्षत और जल को जमीन पर छोड़ दें )
- तीसरे अध्याय का पाठ करें | (इसे शुरू करने से पहले हाथ में फूल, अक्षत और जल लेकर ध्यान करें , इसके बाद फूल, अक्षत और जल को जमीन पर छोड़ दें )
- चौथे अध्याय का पाठ करें | (इसे शुरू करने से पहले हाथ में फूल, अक्षत और जल लेकर ध्यान करें , इसके बाद फूल, अक्षत और जल को जमीन पर छोड़ दें )
- पांचवे अध्याय का पाठ करें | (इसे शुरू करने से पहले हाथ में फूल, अक्षत और जल लेकर विनियोग और ध्यान करें , इसके बाद फूल, अक्षत और जल को जमीन पर छोड़ दें )
- छठे अध्याय का पाठ करें | (इसे शुरू करने से पहले हाथ में फूल, अक्षत और जल लेकर ध्यान करें , इसके बाद फूल, अक्षत और जल को जमीन पर छोड़ दें )
- सांतवे अध्याय का पाठ करें | (इसे शुरू करने से पहले हाथ में फूल, अक्षत और जल लेकर ध्यान करें , इसके बाद फूल, अक्षत और जल को जमीन पर छोड़ दें )
- आठवें अध्याय का पाठ करें | (इसे शुरू करने से पहले हाथ में फूल, अक्षत और जल लेकर ध्यान करें , इसके बाद फूल, अक्षत और जल को जमीन पर छोड़ दें )
- नवें अध्याय का पाठ करें | (इसे शुरू करने से पहले हाथ में फूल, अक्षत और जल लेकर ध्यान करें , इसके बाद फूल, अक्षत और जल को जमीन पर छोड़ दें )
- दसवें अध्याय का पाठ करें | (इसे शुरू करने से पहले हाथ में फूल, अक्षत और जल लेकर ध्यान करें , इसके बाद फूल, अक्षत और जल को जमीन पर छोड़ दें )
- ग्यारहवें अध्याय का पाठ करें | (इसे शुरू करने से पहले हाथ में फूल, अक्षत और जल लेकर ध्यान करें , इसके बाद फूल, अक्षत और जल को जमीन पर छोड़ दें )
- बारहवें अध्याय का पाठ करें | (इसे शुरू करने से पहले हाथ में फूल, अक्षत और जल लेकर ध्यान करें , इसके बाद फूल, अक्षत और जल को जमीन पर छोड़ दें )
- तेरहवें अध्याय का पाठ करें | (इसे शुरू करने से पहले हाथ में फूल, अक्षत और जल लेकर ध्यान करें , इसके बाद फूल, अक्षत और जल को जमीन पर छोड़ दें )
- 108 बार नवार्ण मंत्र का जाप करें ( नवार्ण मंत्र के जाप से पहले विनियोग, ऋष्यादिन्यास, करन्यास, हृदयादिन्यास, अक्षरन्यास, दिन्ग्यन्यास, ध्यान और माला पूजा पुस्तक में बताये अनुसार करना चाहिए )
- करन्यास, हृदयादिन्यास और ध्यान करके ऋग्वेदोक्त देवीसूक्त पढ़ना चाहिए |
- फिर अथ तंत्रोक्त देवीसूक्त पढ़ें |
- तीनो रहस्ययों का पाठ करें |
शापोद्धार मंत्र का 7 बार जप करें |
शापोद्धार का मंत्र है :
इसके बाद उत्कीलन मंत्र का 21 बार जाप करें :
7 बार मृतसंजीवनी विद्या का जाप करना चाहिए |जिसका मंत्र इस प्रकार है:
- फिर क्षमा प्रार्थना करें |
- श्री दुर्गामानस पूजा, अथ दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला, अथ देवक्षमास्तोत्रं, सिद्धकुंजिकास्तोत्रम का पाठ करें |
- फिर दुर्गा माता की आरती करें |
'ॐ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि
विद्ये मृतमुत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा।'
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