Kalashtami or Kalbhairav Vrat | Importance and Benefits | Puja Vidhi | Vrat Katha | Kalbhairav Chalisa | Kalbhairav Mantra | Kalbhairav Ashtakam with meaning | Puja Date | Story of Kalbhairav Birth | कालअष्टमी कालभैरव व्रत, पूजा विधि, महत्व, मंत्र, कालभैरव अष्टकम, व्रत कथा, चालीसा
About Kalashtami:
Kalashtami is a significant day dedicated to Lord Kalbhairav. Kalashtami fast is observed on eighth tithi of Krishna Paksha of every month. He is a formiddable manifestation of Lord Shiva and is the Lord of time as the name suggests. He is a fierce manifestation of Shiva. Kaalbhairav have the ability to remove negative energies. He is known as the Kotwal of Kashi. Kalashtami tithi that falls in Margshirsha month is known as Kalbhairav Jayanti. It is believed that on tha day of Kalbhairav Jayanti Lord Kalbhairav incarnated from Lord Shiva to punish Lord Bramha. So after that every ashtami tithi of Krishna paksh of every month is observed in the name of Lord Kalbhairav. So there are 12 Kalashtami tithi in a year. Kalashtami when falls on Sunday or Tuesday then it has a special significance as these two days are dedicated to Lord Bhairav. Worshipping Kalbhairav in Rahu Kaal on every Sunday(approx. 4:30 PM to 06:00 PM) is a very auspicious time.
He serves as the protector of all temples so he is named as Kshetrapaal. Protector of all the Shakti peeth is Batuk Bhairav. He have protective energy.
Kalashtami Vrat Puja Date:
Kalashtami fasting should be observed on the day when Ashtami Tithi prevails during night. As such, sometime Kalashtami fasting is observed on Saptami tithi.
Kalashtami Tithi starts from 07:59 PM on 9 July 2023
Kalashtami Tithi ends on 06:43 PM on 10 July 2023
So, in July 2023, Kalashtami Vrat and Puja will be observed on 9 July 2023.
Kalbhairav Mantra:
- ओम भयहरणं च भैरव:।
- ओम कालभैरवाय नम:।
- ओम ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।
- ओम भ्रं कालभैरवाय फट्।
- ओम शिवगणाय विद्महे। गौरीसुताय धीमहि। तन्नो भैरव प्रचोदयात।।
Kalbhairav Ashtakam is recited to get rid of fear and negative energies.
Kalbhairav or Kalashtami Vrat importance or significance:
- Devotee who worship him they get rid of fear, diseases, ailments, enemies etc.
- He also removes tantra-mantra, spell, black magic and negative energy.
- Kalbhairav devta also brings happiness and prosperity to his devotees and they get all success in his life.
- Worshipping him strengthens planet Saturn in the horoscope.
- Worshipping Lord Kalbhairav on this day removes sorrow, negative influence and all sufferings.
- Worshipping and observing fast on Kalashtami, we get rid of inauspicious effect of cruel planets.
- It prevents us from financial crisis and court cases.
Kalbhairav Puja Rituals:
- Devotees wake up early and take bath. Those who want to observe fast, they should take sankalp in morning.
- Then light a diya of mustard oil is compulsary.
- Lord Bhairav is offered bhog of Jalebi, sweet bread (meethi roti) and coconut.
- Chant mantra of Kalbhairav and read Kalbhairav Vrat Katha.
- Do arati of Lord Shiva and Lord Kalbhairav.
- Devotees visit the Kalbhairav temple or Shiv Temple on this day to offer prayers and seek blessings.
- People don’t keep photo or idol of Lord Bhairav at home because he is the fierce form of Lord Shiva. So they visit Temple.
- In the evening devotees break the fast after evening puja. They can have sweet roti and jaggery kheer (made from rice and gud).
What to do on Kalbhairav Ashtami tithi:
- Purify your home with Ganga jal and sugandhit dhoop.
- Lighting up a diya of mustard oil is must today. One should light a mustard oil diya in temple also before Lord Kalbhairav and peepal tree.
- Peepal tree puja is must. Light a mustard oil diya under a peepal tree. Offer water mixed with milk, sugar, black til to peepal tree.
- Offering food to bramhins in pilgrimages is also highly rewarding on this day.
- Offer Imarti(jalebi) in Kalbhairav temple.
- Offer sweet bread and Imarti(jalebi) to black colour dog.
- Devotees go to Mahakaleshwar temple to offer their worship.
How was Kalbhairav born?
According to Shiv Mahapuran, once there was a dispute about the superiority between Bramha and Vishnu. Lord Bramha started saying that he is the supreme creator of universe and he has five heads and can do anything like lord Shiva. Thus he should be worshipped not Lord Shiva. To resolve this dispute, Bramha, Vishnu and all the gods and goddesses came to Lord Shiva. Lord Shiva asked all the gods and goddesses that tell me who is the best. All the gods and sages discussed and discovered that Lord Shiva is the best. Lord Vishnu accepted this but Lord Bramha did not liked it. He abused Lord Shiva.
Shiva got angry when Bramhaji said abusive words and from his anger Kalbhairav was born. Seeing this form of Shiva, all the gods and goddesses panicked. Bhairav cut off one of Bramhaji's five heads in anger, since then Bramhaji became four-faced. Then Lord Shiva told Bhairav to visit all the pilgrimages to get rid of Bramha hatya. The place where Bramhaji’s head fell, that place is known as Kapal Mochan Tirtha. Whoever go to Kashi must visit the Kapal Mochan Tirtha.
Kalbhairav/Kalashtami Vrat Katha:
माता सती के पिता राजा दक्ष थे। सती ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध भगवान शिव को अपना जीवन साथी चुन लिया और उनसे विवाह कर लिया। उनके इस फैसले से राजा दक्ष बहुत दुखी और क्रोधित हुए। वे भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे। उन्होंने भगवान शिव को अपमानित करने के लिए एक यज्ञ किया, जिसमें सती तथा भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। सूचना मिलने पर सती ने भगवान शिव से उस यज्ञ में शामिल होने के लिए निवेदन किया। तब उन्होंने सती को समझाया कि बिना निमंत्रण किसी भी आयोजन में नहीं जाना चाहिए, चाहें वह अपने पिता का घर ही क्यों न हो। लेकिन सती नहीं मानी, उन्होंने सोचा कि पिता के घर जाने में कैसा संकोच? वे हट करने लगीं।
वे अपने पिता के घर चली गईं। यज्ञ हो रहा था। सभी देवी, देवता, ऋषि, मुनि, गंधर्व आदि उसमें उपस्थित थे। सती ने पिता से महादेव तथा उनको न बुलाने का कारण पूछा, तो राजा दक्ष भगवान शिव का अपमान करने लगे। उस अपमान से आहत सती ने यज्ञ के हवन कुंड की अग्नि में आत्मदाह कर लिया। ध्यान मुद्रा में लीन भगवान शिव सती के आत्मदाह करने से अत्यंत क्रोधित हो उठे। राजा दक्ष के घमंड को चूर करने के लिए भगवान शिव के क्रोध से काल भैरव की उत्पत्ति हुई। भगवान शिव ने काल भैरव को उस यज्ञ में भेजा।
काल भैरव का रौद्र रूप देखकर यज्ञ स्थल पर मौजूद सभी देवी-देवता, ऋषि भयभीत हो गए। काल भैरव ने राजा दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया। तभी भगवान शिव भी वहां पहुंचे और सती के पार्थिक शरीर को देखकर अत्यंत दुखी हो गए। वे सती के पार्थिक शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण्ड की परिक्रमा करने लगे। ऐसी स्थिति देखकर भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। सती के अंग पृथ्वी पर जहां जहां गिरे, वहां वहां शक्तिपीठ बन गए। जहां आज भी पूजा होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, काल भैरव उन सभी शक्तिपीठों की रक्षा करते हैं।
श्री भैरव जी की आरती (Kaal Bhairav Aarti)
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैंरव देवा।
जय काली और गौरा देवी कृत सेवा।।
तुम्हीं पाप उद्धारक दुख सिंधु तारक।
भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक।।
वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी।
महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयकारी।।
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे।
चौमुख दीपक दर्शन दुख सगरे खोंवे।।
तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी।
कृपा करिए भैरव करिए नहीं देरी।।
पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू डमकावत।।
बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत।।
बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावें।
कहें धरणीधर नर मनवांछित फल पावें।।
Kalbhairav Ashtakam Benefits
Adi Shankaracharya praised Lord Kaalbhairav as the Lord of Kashi who actually means total awareness of the present moment. Adi Shankaracharya says that even divine energies bow down in the feet of Kalbhairav. Chanting Kalbhairav Ashtakam brings down negative effect of Rahu, Ketu and Saturn.
Kalbhairav Ashtakam:
देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् ।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ १॥
अर्थ - काशी के श्रेष्ठ शासक भगवान कालभैरव को नमन करता हूं, जिनके पास एक लाखों लाख सूर्य हैं, जो उपासकों को पुनर्जन्म के पाश से बचाते हैं, और जो विजयी हैं; जिनके पास नीली गर्दन है, जो हमारी जरूरतों और इच्छाओं को पूरा करते हैं और जिनके पास तीन नेत्र हैं; जो स्वयं मृत्युपर्यंत हैं और जिनकी आंखें कमल के समान सुंदर हैं; जिन्होंने त्रिशूल और रुद्राक्ष धारण किया हुआ है और जो अमर हैं। उस देव की मैं आराधना करता हूं।
भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ २॥
अर्थ - काशी के श्रेष्ठ शासक भगवान कालभैरव को नमन करता हूं, जिनके पास एक लाखों लाख सूर्य हैं, जो उपासकों को पुनर्जन्म के पाश से बचाते हैं, और जो विजयी हैं; जिनके पास नीली गर्दन है, जो हमारी जरूरतों और इच्छाओं को पूरा करते हैं और जिनके पास तीन नेत्र हैं; जो स्वयं मृत्युपर्यंत हैं और जिनकी आंखें कमल के समान सुंदर हैं; जिन्होंने त्रिशूल और रुद्राक्ष धारण किया हुआ है और जो अमर हैं। उस देव की मैं आराधना करता हूं।
शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ३॥
अर्थ - काशी के परम स्वामी भगवान कालभैरव को नमन, जिन्हाेंने अपने हाथ में शूल, टंक, पाश और दंड धारण किया हुआ है; जिसका शरीर श्यामवर्ण है, जो आदिम भगवान हैं, जो अजेय हैं, और दुनिया के रोगों से मुक्त हैं; जो बहुत शक्तिशाली हैं और जो सुंदर तांडव नृत्य का आनंद लेते हैं।
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ४॥
अर्थ - काशी के श्रेष्ठ शासक भगवान कालभैरव को नमन, जो आकांक्षाओं और आध्यात्मिकता दोनों को प्रदान करते हैं, जिनका शानदार रूप है; जो अपने भक्तों की देखभाल करते हैं; जितनी कमर में सुंदर करधनी रुनझुन करती हुई सुशोभित है, जिसमें घंटियाँ होती हैं और जो चलने पर एक सुरीली आवाज करती है।
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशनं कर्मपाशमोचकं सुशर्मधायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ५॥
अर्थ - काशी के श्रेष्ठ शासक भगवान कालभैरव, जो धर्म की जीत का आश्वासन देते हैं, जो अधर्म के मार्ग को नष्ट करते हैं, जो हमें कर्म की जंजीरों से मुक्त करते हैं और जो सुनहरे रंग के सर्पों से घिरे हैं। मैं उन्हें नमन करता हूं।
रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ६॥
अर्थ - काशी के सबसे महान शासक भगवान कालभैरव की मैं आराधना करता हूं, जिनके पैर हीरे से सजाए गए दो सुनहरे पादुका से अलंकृत हैं; जो कालातीत हैं, ईश्वर जो हमारी इच्छाओं को पूरा करते हैं; जो यम के अभिमान को दूर करते हैं; जिनके भयानक नुकीले दांत हमें मुक्ति प्रदान करते हैं।
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं दृष्टिपात्तनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ७॥
अर्थ - काशी के श्रेष्ठ शासक भगवान कालभैरव को नमस्कार, जिनकी शक्तिशाली दहाड़ कमल में जन्मे ब्रह्मा के आविष्कारों के आवरण (यानी हमारे मानसिक भ्रम) को समाप्त कर देती है; जिनकी एक दृष्टि हमारे सारे पापों को दूर कर देती है; जो आठ सिद्धियों (उपलब्धियों) को प्रदान करते हैं और जो कपालमाला (खोपड़ी की माला) पहनते हैं।
भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ८॥
अर्थ - काशी के श्रेष्ठ शासक भगवान कालभैरव को नमस्कार, जो आत्माओं और भूतों के नायक हैं, जो सम्मान प्रदान करते हैं; जो काशीवासियों को उनके अनैतिक और अधर्म के कामों से मुक्त करते हैं; जो हमें सदाचार के मार्ग पर ले जाते हैं, जो ब्रह्मांड के सबसे शाश्वत स्वामी हैं।
॥ फल श्रुति॥
कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम् ॥
अर्थ - जो लोग ज्ञान, और स्वतंत्रता प्राप्त करने हेतु, कई प्रकार की धार्मिकता को बढ़ाते हैं और दुख, मोह, अभाव, स्वार्थ, घृणा आदि को नाश करने हेतु हैं कालभैरव अष्टकम के इन आठ श्लोकों को पढ़ते हैं, वे निश्चित रूप से मृत्यु के बाद कालभैरव के चरण यानी भगवान तक पहुंचेंगे। मैं काशी के महानतम स्वामी भगवान कालभैरव को नमन करता हूं।
॥इति कालभैरवाष्टकम् संपूर्णम् ॥
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