Thursday, June 22, 2023

विनायक चतुर्थी कथा, गणपति मंत्र, चालीसा, स्तोत्र और आरती 

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विनायक चतुर्थी व्रत में कथा सुनने और पढ़ने का विशेष महत्व है। अगर आप चतुर्थी तिथि का व्रत नहीं कर रहे हैं तो कथा सुनने मात्र से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

Vinayak Chaturthi katha mantra



विनायक चतुर्थी की कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती और भगवान महादेव नर्मदा नदी के तट पर चौपड़ खेल रहे थे। खेल में हार जीत का फैसला करने के लिए महादेव ने एक पुतला बना दिया और उसकी प्राण प्रतिष्ठा कर दी। भगवान महादेव ने बालक से कहा कि जीतने पर जीतने पर विजेता का फैसला करे। महादेव और माता पार्वती ने खेलना शुरू किया और तीनों बाद माता पार्वती जीत गईं। खेल समाप्त होने के बाद बालक ने महादेव को विजयी घोषित कर दिया। यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और बालक को अपाहिज रहने का शाप दे दिया।

माता पार्वती ने बताया उपाय
इसके बाद माता पार्वती से बालक ने क्षमा मांगी और कहा कि ऐसा भूलवश हो गया है। जिसके बाद माता पार्वती ने कहा कि शाप तो वापस नहीं लिया जा सकता लेकिन इसका एक उपाय है। माता पार्वती ने बालक को उपाय बताते हुए कहा कि भगवान गणेश की पूजा के लिए नाग कन्याएं आएंगी और तुमको उनके कहे अनुसार व्रत करना होगा, जिससे तुमको शाप से मुक्ति मिल जाएगी। बालक कई सालों तक शाप से जूझता रहा और एक दिन नाग कन्याएं भगवान गणेश की पूजा के लिए आईं। जिनसे बालक ने गणेश व्रत की विधि पूछी। बालक ने सच्चे मन से भगवान गणेश की पूजा की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने वरदान मांगने को कहा।

बालक को मिली शाप से मुक्ति
बालक ने भगवान गणेश से प्रार्थना की और कहा कि, हे विनायक, मुझे इतने शक्ति दें कि मैं पैरों से चलकर कैलाश पर्वत पर जा सकूं। भगवान गणेश ने बालक को आशीर्वाद दे दिया और अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद बालक ने कैलाश पर्वत पर भगवान महादेव को शाप मुक्त होने की कथा सुनाई। चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती भगवान शिव से रुष्ट हो गई थीं। बालक के बताए अनुसार, भगवान शिव ने भी 21 दिनों का भगवान गणेश का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान महादेव के प्रति नाराजगी खत्म हो गई। मान्यता है कि भगवान गणेश की जो सच्चे मन से पूजा अर्चना और आराधना करते हैं, उनके सभी दुख दूर हो जाते हैं। साथ ही कथा सुनने व पढ़ने मात्र से जीवन में आने वाले सभी विघ्न दूर होते हैं।

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गणपति मंत्र:

  • गणपति बीज मंत्र: "गं"
  • गणपति मंत्र: "ॐ गंग गणपतये नमः"
  • सफलता के लिए गणपति मंत्र:  

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभा 

निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वाकर्येशु सर्वदा 
  • गणेश गायत्री मंत्र:
ॐ एकदंताय विद्महे, वक्रतुंडाय धीमहि 
तन्नो दंती प्रचोदयात 
  • गणेश चालीसा 

जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल।

विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल॥

जय जय जय गणपति राजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥

जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥

राजित मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥

सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥

धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विधाता॥

ऋद्धि सिद्धि तव चँवर डुलावे। मूषक वाहन सोहत द्वारे॥

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगल कारी॥

एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा।

अतिथि जानि कै गौरी सुखारी। बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥

अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥

मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला॥

गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना॥

अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै। पलना पर बालक स्वरूप ह्वै॥

बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥

सकल मगन सुख मंगल गावहिं। नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं॥

शम्भु उमा बहुदान लुटावहिं। सुर मुनि जन सुत देखन आवहिं॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आए शनि राजा॥

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक देखन चाहत नाहीं॥

गिरजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर न शनि तुहि भायो॥

कहन लगे शनि मन सकुचाई। का करिहौ शिशु मोहि दिखाई॥

नहिं विश्वास उमा कर भयऊ। शनि सों बालक देखन कह्यऊ॥

पड़तहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक शिर उड़ि गयो आकाशा॥

गिरजा गिरीं विकल ह्वै धरणी। सो दुख दशा गयो नहिं वरणी॥

हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्ह्यों लखि सुत को नाशा॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाए। काटि चक्र सो गज शिर लाए॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण मन्त्र पढ़ शंकर डारयो॥

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी की प्रदक्षिणा लीन्हा॥

चले षडानन भरमि भुलाई। रची बैठ तुम बुद्धि उपाई॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥

धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहस मुख सकै न गाई॥

मैं मति हीन मलीन दुखारी। करहुँ कौन बिधि विनय तुम्हारी॥

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। लख प्रयाग ककरा दुर्वासा॥

अब प्रभु दया दीन पर कीजै। अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥

दोहा

श्री गणेश यह चालीसा पाठ करें धर ध्यान।

नित नव मंगल गृह बसै लहे जगत सन्मान॥

सम्वत् अपन सहस्र दश ऋषि पंचमी दिनेश।

पूरण चालीसा भयो मंगल मूर्ति गणेश॥

  •  संकटनाशन गणेश स्तोत्रं:

॥ नारद पुराण वर्णित श्री संकट नाशन गणेश स्तोत्र ॥

[ नारद उवाच ]
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् ।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुःकामार्थसिद्धये ॥1

प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् ।
तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ॥2

लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ॥3

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ॥4

द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ॥5

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥6

जपेद् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत् ।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः ॥7

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत् ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥8

  • गणेश आरती 

जय गणेश जय गणेशजय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वतीपिता महादेवा ॥

एक दंत दयावंतचार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहेमूसे की सवारी ॥

जय गणेश जय गणेशजय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वतीपिता महादेवा ॥

पान चढ़े फल चढ़ेऔर चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगेसंत करें सेवा ॥

जय गणेश जय गणेशजय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वतीपिता महादेवा ॥

अंधन को आंख देतकोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देतनिर्धन को माया ॥

जय गणेश जय गणेशजय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वतीपिता महादेवा ॥

'सूर' श्याम शरण आएसफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वतीपिता महादेवा ॥

जय गणेश जय गणेशजय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वतीपिता महादेवा ॥

दीनन की लाज रखोशंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करोजाऊं बलिहारी ॥

जय गणेश जय गणेशजय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वतीपिता महादेवा ॥


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