Yogini Ekadashi Vrat Katha in Hindi
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योगिनी एकादशी व्रत कथा!
महाभारत काल की बात है कि एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने
भगवान श्री कृष्ण कहा: हे त्रिलोकीनाथ! मैंने ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी की कथा सुनी। अब आप कृपा
करके आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनाइये। इस एकादशी का नाम तथा
माहात्म्य क्या है? सो अब मुझे
विस्तारपूर्वक बतायें।
श्रीकृष्ण ने कहा: हे पाण्डु पुत्र! आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष
की एकादशी का नाम योगिनी एकादशी है। इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह
व्रत इस लोक में भोग तथा परलोक में मुक्ति देने वाला है।
हे धर्मराज! यह एकादशी तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। इसके
व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। तुम्हें मैं पुराण में कही हुई कथा सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक श्रवण करो-
कुबेर नाम का एक राजा अलकापुरी नाम की नगरी में राज्य करता था। वह शिव-भक्त था।
उनका हेममाली नामक एक यक्ष सेवक था, जो पूजा के लिए फूल लाया करता था। हेममाली की विशालाक्षी नाम की अति सुन्दर
स्त्री थी।
एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प लेकर आया, किन्तु कामासक्त होने के
कारण पुष्पों को रखकर अपनी स्त्री के साथ रमण करने लगा। इस भोग-विलास में दोपहर हो
गई।
हेममाली की राह देखते-देखते जब राजा कुबेर को दोपहर हो गई
तो उसने क्रोधपूर्वक अपने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर पता लगाओ कि हेममाली
अभी तक पुष्प लेकर क्यों नहीं आया। जब सेवकों ने उसका पता लगा लिया तो राजा के पास
जाकर बताया- हे राजन! वह हेममाली अपनी स्त्री के साथ रमण कर रहा है।
इस बात को सुन राजा कुबेर ने हेममाली को बुलाने की आज्ञा
दी। डर से काँपता हुआ हेममाली राजा के सामने उपस्थित हुआ। उसे देखकर कुबेर को
अत्यन्त क्रोध आया और उसके होंठ फड़फड़ाने लगे।
राजा ने कहा: अरे अधम! तूने मेरे परम पूजनीय देवों के भी
देव भगवान शिवजी का अपमान किया है। मैं तुझे श्राप देता हूँ कि तू स्त्री के वियोग
में तड़पे और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी का जीवन व्यतीत करे।
कुबेर के श्राप से वह तत्क्षण स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गिरा
और कोढ़ी हो गया। उसकी स्त्री भी उससे बिछड़ गई। मृत्युलोक में आकर उसने अनेक भयंकर
कष्ट भोगे, किन्तु शिव की
कृपा से उसकी बुद्धि मलिन न हुई और उसे पूर्व जन्म की भी सुध रही। अनेक कष्टों को
भोगता हुआ तथा अपने पूर्व जन्म के कुकर्मो को याद करता हुआ वह हिमालय पर्वत की तरफ
चल पड़ा।
चलते-चलते वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुँचा। वह
ऋषि अत्यन्त वृद्ध तपस्वी थे। वह दूसरे ब्रह्मा के समान प्रतीत हो रहे थे और उनका
वह आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान शोभा दे रहा था। ऋषि को देखकर हेममाली वहाँ गया
और उन्हें प्रणाम करके उनके चरणों में गिर पड़ा।
हेममाली को देखकर मार्कण्डेय ऋषि ने कहा: तूने कौन-से
निकृष्ट कर्म किये हैं, जिससे तू कोढ़ी हुआ और भयानक कष्ट भोग रहा है।
महर्षि की बात सुनकर हेममाली बोला: हे मुनिश्रेष्ठ! मैं
राजा कुबेर का अनुचर था। मेरा नाम हेममाली है। मैं प्रतिदिन मानसरोवर से फूल लाकर
शिव पूजा के समय कुबेर को दिया करता था। एक दिन पत्नी सहवास के सुख में फँस जाने
के कारण मुझे समय का ज्ञान ही नहीं रहा और दोपहर तक पुष्प न पहुँचा सका। तब
उन्होंने मुझे शाप श्राप दिया कि तू अपनी स्त्री का वियोग और मृत्युलोक में जाकर
कोढ़ी बनकर दुख भोग। इस कारण मैं कोढ़ी हो गया हूँ तथा पृथ्वी पर आकर भयंकर कष्ट भोग
रहा हूँ, अतः कृपा करके
आप कोई ऐसा उपाय बतलाये, जिससे मेरी मुक्ति हो।
मार्कण्डेय ऋषि ने कहा: हे हेममाली! तूने मेरे सम्मुख सत्य
वचन कहे हैं, इसलिए मैं तेरे
उद्धार के लिए एक व्रत बताता हूँ। यदि तू आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक
एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सभी पाप नष्ट हो जाएँगे।
महर्षि के वचन सुन हेममाली अति प्रसन्न हुआ और उनके वचनों
के अनुसार योगिनी एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करने लगा। इस व्रत के प्रभाव से अपने
पुराने स्वरूप में आ गया और अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।
भगवान श्री कृष्ण ने कहा: हे राजन! इस योगिनी एकादशी की कथा
का फल 88000 ब्राह्मणों को
भोजन कराने के बराबर है। इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में मोक्ष
प्राप्त करके प्राणी स्वर्ग का अधिकारी बनता है।
EKADASHI VRAT AARATI | EKADASHI MATA AARATI
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