Purnima Vrat Katha, Benefits, Puja Vidhi and Mata Laxami Puja
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पूर्णिमा तिथि को धन दायक और संतान दायक व्रत माना गया है। जो लोग पूरे विधि विधान से पूर्णिमा का व्रत करते हैं और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का अर्घ देते हैं उनपर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। पूर्णिमा व्रत की कथा :
द्वापर युग में एक समय की बात है कि यशोदा
जी ने कृष्ण से कहा हे कृष्ण! तुम सारे संसार के उत्पन्नकर्ता, पोषण तथा उसके
संहारकर्ता हो, आज कोई
ऐसा व्रत मुझसे कहो, जिसके
करने से मृत्युलोक में स्त्रियां को विधवा होने का भय न रहें तथा यह व्रत सभी
मनुष्यों की मनोकामना पूर्ण करने वाला हो। श्री कृष्ण कहने लगे
हे माता! तुमने अति सुंदर प्रश्न किया है। मैं तुमसे ऐसे ही व्रत को सविस्तार कहता
हूं। सौभाग्य की प्राप्ति के लिए स्त्रियों को द्वात्रिंशत् अर्थात बत्तीस
पूर्णिमाओं का व्रत करना चाहिए। इस व्रत को करने से स्त्रियों को सौभाग्य संपत्ति
मिलती है। यह व्रत अचल सौभाग्य को देने वाला और भगवान शंकर के प्रति मनुष्य मात्र
की भक्ति को बढ़ाने वाला है। यशोदा जी कहने लगीं हें कृष्ण सर्वप्रथम इस व्रत को
मृत्युलोक में किसने किया था। इसके विषय विस्तार पूर्वक मुझसे कहो। श्री कृष्ण जी कहने
लगे कि इस भूमंडल पर एक अत्यंत प्रसिद्ध राजा चंद्रहास से पालित अनेक प्रकार के
रत्नों से परिपूर्ण कातिका नाम की एक नगरी थी। वहां धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण था
और इसकी स्त्री अती सुशील रुपवती थी। दोनों ही उस नगरी में बड़े प्रेम से साथ रहते
थे। घर में धन धान्य आदि की कोई कमी नहीं थी। उनको एक बड़ा दुख था उनके कोई संतान
नहीं थी। जिस वजह से वह बहुत दुखी रहते थे। एक दिन एक बड़ा तपस्वी योगी उस नगरी
में आया। वह योगी बाकी सभी घरों से भिक्षा मांगकर भोजन किया करता था लेकिन, उस ब्राह्मण के घर
से भिक्षा नहीं मांगा करता था। एक दिन योगी गंगा किनारे भिक्षा मांगकर प्रेमपूर्वक
खा रहा था कि धनेश्वर ने योगी को यह सब करते देख लिया।
सब कार्य किसी प्रकार से देख लिया। अपनी
भिक्षा अनादर से दुखी होकर धनेश्वर योगी से बोले और सभी घरों से भिक्षा लेते हैं
परंतु मेरे घर की भिक्षा कभी भी नहीं लेते इसका कारण क्या है। योगी कहने लगा कि
आपके धर्म हमें इस बात की आज्ञा नहीं देता है, क्योंकि अभी आप
गृहस्थ जीवन में एक सुख से वंचित हैं। आपके घर संतान होने पर मैं आपके घर से भी
भिक्षा स्वीकार कर लूंगा।
उन्होंने कहा कि जिसे संतान नहीं है उसके घर से
भिक्षा लेने से मेरे भी पतित हो जाने का भय है। धनेश्वर यह सब बात सुनकर बहुत दुखी
हुआ और हाथ जोड़कर योगी के पैरों पर गिर पड़ा तथा दुखी मन से कहने लगा की आप मुझे
संतान प्राप्ति के उपाय बताए। आप सर्वज्ञ है मुझपर अवश्य ही यह कृपा कीजिए। धन की
मेरे घर में कोई कमी नहीं है। लेकिन, मैं संतान न होने के कारण अत्यंत दुखी हूं
आप मेरे इस दुख का हरण कीजिए। यह सुनकर योगी कहने लगे तुम चण्डी की आराधना करो। घर
पहुंचकर उन्होंने यह सारी बात अपनी पत्नी को बताई और खुद वन में चला गया। वन में
पहुंचकर उसने चण्डी की आराधना की और उपवास किया। चण्डी ने सोलह दिन
उसको सपने में दर्शन दिए और कहा कि हें धनेश्वर! जा तेरे पुत्र होगा, लेकिन, उसकी आयु सिर्फ सुलह
वर्ष होगी। सुलह वर्। की आयु में ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। अगर तुम दोनों स्त्री
और पुरुष 32 पूर्णिमाओं
को व्रत करोगे तो यह दीर्घायु हो जाएगा। जितनी तुम्हारा सामर्थ हो उतने आचे
के दिये जलाकर शिवजी का पूजन करना। लेकिन पूर्णमासी 32 ही होनी चाहिए। सुबह
होती ही तुम्हें इस स्थान के पास एक आम का पेड़ दिखाई देगा। उसपर चढ़कर एक फल
तोड़कर अपने घर चले जाना। अपनी स्त्री का इस बारे में बताना। सुबह स्नान होने के
बाद वह स्वच्छ होकर शंकर जी का ध्यान करके उस फल को खा ले। तब शंकर भगवान की कृपा
से उसको गर्भ हो जाएगा। जब ब्राह्मण सुबह उठा तो उसे उस स्थान पर आम का पेड़ दिखाई
दिया और वह उससे फल तोड़ने के चढ़ा लेकिन, वह पेड़ पर चढ़ नहीं पा रहा था। यह देखकर
उसे बड़ी चिंता हुई उसने भगवान गणेश की उपासनी की और कहा हे दयानिधे! अपने भक्तों
के विघ्नों का नाश करके उनके मंगल कार्य को करने वाले, दुष्ट का नाश करने
वाले रिद्धि सिद्धि देने वाले आप मुझे इतना बल दें कि मैं अपनी
मनोकामना पूरी कर सकूं। इसके बाद वह पेड़ से फल तोड़कर अपनी पत्नी के पास पहुंचा।
उसकी पत्नी ने अपने पति के कहे अनुसार, इस फल को खा लिया और वह गर्भवती हो गई।
देवी की कृपा से उसे बहुत सुंदर पुत्र पैदा हुआ। उसका नाम उन्होंने देवीदास रखा।
माता पिता के हर्ष और शोक के साथ वह बाल बढ़ने लगा। भगवान की कृपा से बालक बहुत ही
सुंदर था। सुशील और पढ़ाई लिखाई में भी बहुत ही निपुण था। दुर्गा जी के कथानुसार, उसकी माता से 32 पूर्णमासी का व्रत
रखा। जैसे ही सोलहवां वर्ग लगा दोनों पति पत्नी बहुत दुखी हुए। कही उनके पुत्र की
मृत्यु न हो जाए। उन्होंने सोचा की अगर उनके सामने यह सब हुआ तो वह कैसा देख
पाएंगे। तभी उन्होंने देवीदास के मामा को बुलाया और एक वर्ष के लिए देवीदास को
काशी में पढ़ने के लिए भेज दिया। एक वर्ष के बाद उसे वापस लेकर आ जाना। देवीदास
अपने माता के साथ एक घोड़े पर सवार होकर चल दिया। उसके मामा को भी यह बात पता नहीं
था। दोनों पति पत्नी से 32 पूर्णमासी
का व्रत पूरा किया।
दूसरी तरफ मामा और भांजा दोनों रात गुजारने के लिए
रास्ते में एक गांव में रुके। उस दिन उस गांव में ब्राह्मण की कन्या का विवाह होने
वाला था। जिस धर्मशाली में वर और बारात के बाकी लोग रुके हुए थे। उसी धर्मशाला में देवीदास और
उसका मामा ठहर गए। उधर कन्या को तेल आदि चढ़ने के बाद जब लग्न का समय आया तो वर की
तबीयत खराब हो गई। वर के पिता ने अपने परिवार वालों से विचार विमर्श करके कहा कि
यह देवीदास मेरे पुत्र जैसा ही है मैं इसके साथ लगन करा दूं और बाद में बाकी सारे
काम मेरे बेटे के साथ पूरे हो जाएंगे। ऐसे कहने के बाद वर के पिता देवीदास को
मांगने के लिए उसके मामा के पास गए और उन्हें सारी बात बताई। मामा ने कहा कि कन्या
दान में जो कुछ भी मिलेगा वो हमें दे दिया जाए।वर के पिता ने बात स्वीकार कर ली।
इसके बाद देवीदास का विवाह कन्या के साथ संपन्न हो गया। इसके बाद वह अपनी पत्नी के
साथ भोजन न कर सका और मन में विचार करने लगा की न जानें यह किसकी पत्नी होगी। यह
सोचकर उसकी आंखों में आंसू आ गए। तब वधू ने पूछा कि क्या बात है? आप उदास क्यों हैं? तब उसने सारी बातें पत्नी
को बता दी। तब कन्या कहने लगी यह ब्रह्म विवाद के विपरीत है। आप ही मेरे पति हैं।
मैं आपकी की पत्नी रहूंगी। किसी अन्य की कभी नहीं। तब देवीदास ने कहा ऐसा मत करिए
क्योंकि, मेरी आयु बहुत कम है। मेरे
बात आपका क्या होगा। लेकिन, उसकी पत्नी नहीं मानी और बोली स्वामी आप भोजन कीजिए। दोनों रात में सोने के
लिए चले गए। सुबह देवीदास ने पत्नी को चार नगों से जड़ी एक अंगूठी दी और एक रुमाल
दिया। और बोला की हे प्रिय! इसे लो और संकेत समझकर स्थिर चित हो जाओं।मेरे मरण और
जीवन जानने के लिए एक पुष्प वाटिका बना लो। उसमें सुगंधि वाली एक नव मल्लिका लगा
लो, उसको प्रतिदिन जल से सीचा
करें और आनंद के साथ खेलो कूदों
जिस समय और जिस दिन मेरा प्राणान्त होगा उस
दिन यह फूल सूख जाएंगे। जब यह फिर से हरे हो जाएं तो जान लेना मैं जीवित हूं। यह
समझाकर वह वहां से चला गया। इसके बाद जब वर और बाकी बाराती मंडप में आए तो कन्या
ने उसे देखकर कहा कि ये मेरा पति नहीं है। मेरे पति वह है जिनके साथ रात में विवाद
हुआ है। इसके साथ मेरा विवाह नहीं हुआ है। अगर यह वहीं है तो यह बताएं कि मैंने
इसके क्या दिया है साथ ही कन्या दान के समय को आभूषण मिले उन्हें दिखाएं। कन्या की
ये सारी बातें सुनकर वह कहने लगा की मैं यह सब नहीं जानता । इसके बाद सारी बारात
भी अपमानित होकर लौट गई। जिस समय और जिस दिन मेरा प्राणान्त होगा उस
दिन यह फूल सूख जाएंगे। जब यह फिर से हरे हो जाएं तो जान लेना मैं जीवित हूं। यह
समझाकर वह वहां से चला गया। इसके बाद जब वर और बाकी बाराती मंडप में आए तो कन्या
ने उसे देखकर कहा कि ये मेरा पति नहीं है। मेरे पति वह है जिनके साथ रात में विवाद
हुआ है। इसके साथ मेरा विवाह नहीं हुआ है। अगर यह वहीं है तो यह बताएं कि मैंने
इसके क्या दिया है साथ ही कन्या दान के समय को आभूषण मिले उन्हें दिखाएं। कन्या की
ये सारी बातें सुनकर वह कहने लगा की मैं यह सब नहीं जानता । इसके बाद सारी बारात
भी अपमानित होकर लौट गई। उधर उसकी पत्नी उसके काल की प्रतीक्षा कर
रही थी, उसकी पत्नी ने जाकर
देखा की पुष्प और पत्र दोनों ही नहीं है तो उसको बहुत आश्चर्य हुआ और जब उसने देखा
की पुष्पवाटिका फिर से हरी हो गई तो वह समझ गई की उसका पति जिंदा हो गया है। इसके
बाद वह बहुत ही प्रसन्न होकर अपने पिता से कहने लगी की मेरे पति जीवित हैं उनको
ढूंढिए। जब सोलहवां वर्ष व्यतीत हो गया तो देवीदास भी अपने मामा के साथ काशी चल
दिया। इधर उसकी पत्नी के परिवार वाले उन्हें ढूंढने के लिए जा ही रहे थे कि
उन्होंने देखा की देवीदास और उसका मामा उधर ही आ रहे थे। उसको देखकर उनके ससुर
बहुत प्रसन्न हुए और उसे अपने घर ले आए। वहां सारा वगर इकट्ठा हो गया और कन्या ने
भी उसे पहचान लिया। देवीदास ने इसके बाद अपनी पत्नी और मामा को लेकर वहां से चल
जिया। उसके ससुर ने भी उसे बहुत धन दहेज दिया। जब वह अपने घर की तरफ चल रहा था तो
उसके माता पिता को लोगों ने खबर कर दी। तुम्हारा पुत्र देवीदास अपनी पत्नी और मामा के साथ आ
रहा है। ऐसा समाचार सुनकर पहले तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ लेकिन, जब देवीदास आया और उसने
अपने माता पिता के पैर छुए तो देवीदास के माता पिता ने उनका माथा चूमा और दोनों को
अपने सीने से लगा लिया। दोनों के आने की खुशी में धनेश्वर ने बहुत दान दक्षिणा
ब्राह्मणों को दी।
श्री कृष्ण जी कहने लगे की इस तरह धनेश्वर को 32 पूर्निमाओं को व्रत के प्रभाव से संतान प्राप्त हुई। जो स्त्रियां इस व्रत को
करती हैं वह जन्म जन्मांतरों तक वैधव्य का दुख नहीं भोगती हैं और सदैव सौभाग्यवती
रहती हैं, यह मेरा वचन है। यह व्रत
संतान देने वाला और सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है।
पूर्णिमा व्रत पूजन विधि-
1. हमारे धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि पूर्णिमा तिथि को किसी पवित्र नदी में स्नान करना शुभ होता है.
2. अगर आप किसी नदी में स्नान नहीं कर सकते हैं तो अपने नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर घर पर भी स्नान कर सकते हैं.
3. पूर्णिमा तिथि पर पित्र तर्पण करना भी बहुत शुभ माना जाता है.
4. पूर्णिमा के दिन प्रातः काल स्नान करने के पश्चात संकल्प लेकर पूरे विधि विधान से चंद्र देव की पूजा अर्चना करें.
5. चंद्रमा की पूजा करते समय नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें:
ओम सोम सोमाय नमः
6. भगवान शिव को चंद्रमा अत्यंत प्रिय है. चंद्रमा, भगवान् शिव की जटाओं
में विराजमान रहता है. इसीलिए पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की पूजा के साथ-साथ भगवान
शिव की पूजा करने से मनचाहे फलों की प्राप्ति होती है.
7. चंद्रमा एक स्त्री प्रधान ग्रह है. इसलिए इसे मां पार्वती का प्रतीक भी माना जाता है.
8. अगर आप पूर्णिमा तिथि के दिन भगवान शिव के साथ-साथ मां पार्वती और संपूर्ण शिव परिवार की पूजा करते हैं तो इससे आपको सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी.
पूर्णिमा व्रत के लाभ-
1. अगर आप मानसिक कष्टों से मुक्ति पाना चाहते हैं तो पूर्णिमा का व्रत अवश्य करें.
2. पूर्णिमा व्रत करने से पारिवारिक कलह और अशांति दूर हो जाती है.
3. जिन व्यक्तियों की कुंडली में चंद्र ग्रह पीड़ित और दूषित है और इस ग्रह की वजह से जीवन में बहुत समस्याएं आ रही हैं उन्हें पूर्णिमा व्रत अवश्य करना चाहिए.
4. पूर्णिमा के दिन शिवलिंग पर शहद, कच्चा दूध, बेलपत्र, शमी पत्र अर्पित करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और सभी प्रकार की बीमारियों से भी मुक्ति मिलती है.
5. जो लोग अकारण डरते हैं या मानसिक चिंता से ग्रसित रहते हैं उन्हें पूर्णमासी व्रत अवश्य करना चाहिए|
6. लम्बा और प्रेम भरा वैवाहिक जीवन व्यतीतकरने के लिए भी पूर्णिमा व्रत करना बहुत शुभ माना जाता है.
पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की पूजा-
1. हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि
मां लक्ष्मी को पूर्णिमा तिथि विशेष प्रिय होती है.
2. इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने से
मनुष्य के जीवन में किसी भी प्रकार की कमी नहीं रहती है.
3. शास्त्रों के अनुसार पूर्णिमा के दिन
सुबह प्रातः काल उठकर स्नान करने के पश्चात पीपल के पेड़ में मीठा जल अर्पित करें.
4. अब घी का दीपक और अगरबत्ती जलाकर मां
लक्ष्मी की पूजा करें. ऐसा करने से मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है.
5. प्रत्येक पूर्णिमा के दिन सुबह स्नान
करने के पश्चात जल में थोड़ी सी हल्दी मिलाकर उससे अपने घर के मुख्य द्वार पर ओम
बनाएं. ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं.
7. हर पूर्णिमा के दिन चंद्रमा उदय होने के
पश्चात मिश्री डालकर साबूदाने की खीर बनाएं और मां लक्ष्मी को भोग लगाएं. अब इसे
प्रसाद के रूप में बांट दें. ऐसा करने से आपके घर में धन के आगमन का मार्ग खुल
जायेंगे.
8. प्रत्येक पूर्णिमा के दिन सुबह के समय
अपने घर के मुख्य दरवाजे पर आम के ताजा पत्तों से बना हुआ तोरण लगाएं. ऐसा करने से
घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है.
9. पूर्णिमा के दिन कभी भी किसी भी प्रकार
के तामसिक वस्तुओं का सेवन ना करें.
10. अपने वैवाहिक जीवन को सफल बनाने के लिए
प्रत्येक पूर्णिमा को पति या पत्नी दोनों में से किसी भी एक को चंद्रमा को दूध
अर्पण करना चाहिए.
11. पति पत्नी साथ में भी चंद्रदेव को दूध
अर्पित कर सकते हैं ऐसा करने से वैवाहिक जीवन सफल होता है.
12. पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी के मंदिर
में जाकर इत्र और सुगंधित अगरबत्ती अर्पण करें.
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